My Bicycle (Hindi poem)
Bicycle is the integral part of everyone's childhood. Many memories triggers when we remember our childhood's best friend. Here is the poem, on my bicycle, which symbolically reflects my (human's) laziness and fickleness.
अच्छा ही हुआ की मैं पतला नहीं हुआ।
अगर हो जाता, तो आज पतला होने के लिए,
मेरी साइकिल को क्यों याद करता?
कभी पानी और ऑक्सीजन (Oxygen) ने उस की शान पे रस्ट (Rust) का दाग लगाया,
तो कभी उसके, अब तक मेरा वज़न सहने वाले, टायर्स (Tyres) ने हवा का त्याग किया!
अच्छा ही हुआ की मैं पतला नहीं हुआ।
अगर हो जाता तो आज अपनी साइकिल को कैसे याद करता?
हां मेरे स्वार्थ ने आज मेरी कोने में पड़ी
उस कोने में जहा लिज़र्ड्स (Lizards), स्पाइडर्स (Spiders) ने,
साइकिल को देख के ही मैं तो चला गया उसी बचपन में
टायर्स पिचके हुए थे और चेन (Chain) निकली हुई,
साइकिल जैसे हस्ते हस्ते रोने लगी थी!
परं वो भी कम नहीं थी,
अपनी नाराज़गी उसने भी जताई!
जी हां! नाराज़गी जताने का उसका अपना ही तरीका था।
अपने स्टैंड (Stand) पर खड़ी न रहकर मुझ पर जैसे गिर पड़ी!
इम्बैलेंसड स्टेट (Imbalanced state) मैं आखिर खड़ी भी कैसे रहती?
मेरी साइकिल फाइनली (finally) हार मान गिर पड़ी!
मैकेनिक (Mechanic) के पास जाने के लिए निकाला जब मैंने उसे,
गेट (Gate) के बहार साइकिल की मुलाकात हुई बाइक (Bike) और एक्टिवा से!
बाइक और एक्टिवा जैसे चिढ़ा रहे थे मुझे और मेरी साइकिल को…
चहक और महक रहे थे बाइक और एक्टिवा, दोनों।
शांत और स्थिर खड़ी, मेरी साइकिल ने जैसे जवाब दिया,
हसलो हसलो क्योकि है आपको भी रोना।
"स्वार्थी है ये मानवी
जब तक हो काम के तब तक हो आप भाव के।
काम गया.…
तो दाम भी जायेगा....
यही नियम है,
यही जीवन है!"
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दुःख, पछतावा और शर्म के मिश्रित फीलिंग्स(Feelings) ने मुझे घेर लिया,
अच्छा हुआ कबाड़ी को न देकर,साइकिल को अपने पास ही रखा।
अच्छा ही हुआ की मैं पतला नहीं हुआ
अगर पतला हो जाता तो मेरी साइकिल को कैसे याद करता?
अच्छा ही हुआ की मैं पतला नहीं हुआ।
अगर हो जाता, तो आज पतला होने के लिए,
मेरी साइकिल को क्यों याद करता?
हां वही साइकिल जिस पर बचपन में कई एडवेंचर्स (Adventures) किये,
एक्टिवा (Activa) आने के बाद, साइकिल ने हर एक ज़ुल्म सहे !!
एक्टिवा (Activa) आने के बाद, साइकिल ने हर एक ज़ुल्म सहे !!
कभी पानी और ऑक्सीजन (Oxygen) ने उस की शान पे रस्ट (Rust) का दाग लगाया,
तो कभी उसके, अब तक मेरा वज़न सहने वाले, टायर्स (Tyres) ने हवा का त्याग किया!
अच्छा ही हुआ की मैं पतला नहीं हुआ।
अगर हो जाता तो आज अपनी साइकिल को कैसे याद करता?
courtesy:pixabay |
हां मेरे स्वार्थ ने आज मेरी कोने में पड़ी
ऑक्सीडाइज (Oxidize) होके रिड्यूस (Reduce) हो रही साइकिल को याद किया।
उस कोने में जहा लिज़र्ड्स (Lizards), स्पाइडर्स (Spiders) ने,
यहाँ तक छोटे छोटे प्लांट्स (plants) ने अपना बसेरा बनाया था। ..
आज मेरे स्वाार्थ ने कई घरो का भी बिध्वंस किया।
आज मेरे स्वाार्थ ने कई घरो का भी बिध्वंस किया।
साइकिल को निकाल कर, उसकी जैसे आवाज़ सुनी मैंने,
मानो कह रही मुझसे "वाह! आज मेरी याद कैसे?"
मानो कह रही मुझसे "वाह! आज मेरी याद कैसे?"
साइकिल को देख के ही मैं तो चला गया उसी बचपन में
जहा स्कूल (School) और टयूशन्स (Tuition) में जाता था साइकिल पे।
afterall, साइकिल पर ही तो मैंने अपना बचपन बिताया
आज जो यादे है उनको मैंने इसी साइकिल के साथ ही तो बनाया।
साइकिल से ही मम्मी के लिया groceries और दूध लाना
और साइकिल पर ही खेल के मैदान पर,
उसी साइकिल को,
स्टंप बनाकर क्रिकेट खेलना।
अब भी याद है कैसे दोस्तों के बीच स्टंट बाज़ी के चक्कर में
मुँह के बल गिरा था
और साइकिल से गिरने के वजह से ही लाइफ में संतुलन का सबक सीखा था।
एग्जाम के दिन ही बीच रास्ते साइकिल की चेन निकल जाना
और पहली बार खुद चेन को फिक्स कर, बड़ी मुश्किल से स्कूल पोहचना।
उस दिन एग्जाम तो मेरा एग्जाम के पहले ही था,
साइकिल के वजह से ही सीखा,
कठिन परिस्थितयो में धैर्य रख कैसे
डट कर करना है सामना।
साइकिल पर ही तो रफ़्तार को मैंने पहली बार परखा था
और उसी साइकिल से कब ब्रेक मरना ज़रूरी है
ये भी समझा था।
कैसा सही वक्त था ना वो?
जब स्कूल और ट्यूशंस में किताबी ज्ञान लेने
साइकिल पर निकलता हुआ हर एक बच्चा
लाइफ लेसंस सफर पर ही सिख लेता था ?
लाइफ के moments मेरे साइकिल के movements से बने है
और साइकिल से ही मेरे लाइफ लेसंस को मोमेंटम मिला है।
आज उसी साइकिल का मूवमेंट और मोमेंटम दोनों बंध है।
जिस साइकिल ने मेरी शान थी बढ़ाई,
आज उसीकी कम हो रही थी शाइन (Shine)!!
आज उसीकी कम हो रही थी शाइन (Shine)!!
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फिर क्या, बहुत ही धीरे से, आराम से मैंने उसको साफ़ किया,
फिर क्या, बहुत ही धीरे से, आराम से मैंने उसको साफ़ किया,
ऑइल (Oil) देकर उसकी प्यास को शांत किया!!!
वो, इतने साल ज़ख़्मी खड़ी थी, एक पैडल (paddle) टुटा था,
और ब्रेक्स (Brakes) तो जाम ही हो गयी थी!
और ब्रेक्स (Brakes) तो जाम ही हो गयी थी!
टायर्स पिचके हुए थे और चेन (Chain) निकली हुई,
साइकिल जैसे हस्ते हस्ते रोने लगी थी!
परं वो भी कम नहीं थी,
अपनी नाराज़गी उसने भी जताई!
जी हां! नाराज़गी जताने का उसका अपना ही तरीका था।
अपने स्टैंड (Stand) पर खड़ी न रहकर मुझ पर जैसे गिर पड़ी!
इम्बैलेंसड स्टेट (Imbalanced state) मैं आखिर खड़ी भी कैसे रहती?
मेरी साइकिल फाइनली (finally) हार मान गिर पड़ी!
मैकेनिक (Mechanic) के पास जाने के लिए निकाला जब मैंने उसे,
गेट (Gate) के बहार साइकिल की मुलाकात हुई बाइक (Bike) और एक्टिवा से!
बाइक और एक्टिवा जैसे चिढ़ा रहे थे मुझे और मेरी साइकिल को…
चहक और महक रहे थे बाइक और एक्टिवा, दोनों।
शांत और स्थिर खड़ी, मेरी साइकिल ने जैसे जवाब दिया,
हसलो हसलो क्योकि है आपको भी रोना।
"स्वार्थी है ये मानवी
जब तक हो काम के तब तक हो आप भाव के।
काम गया.…
तो दाम भी जायेगा....
यही नियम है,
यही जीवन है!"
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दुःख, पछतावा और शर्म के मिश्रित फीलिंग्स(Feelings) ने मुझे घेर लिया,
अच्छा हुआ कबाड़ी को न देकर,साइकिल को अपने पास ही रखा।
अच्छा ही हुआ की मैं पतला नहीं हुआ
अगर पतला हो जाता तो मेरी साइकिल को कैसे याद करता?
Heart touching poem .....
ReplyDeleteReal fact ....very nice .....
Nice Poem karan ..
ReplyDeleteNice Poem karan ..
ReplyDeleteThanks a lot :)
ReplyDeleteawesome brother , truly you reminded me of childhood.
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